संस्थापक अध्यक्ष की कलम से :-
विकसित कर सकती है!
20 वीं शाताब्दी के पूर्वाध में जब भारत में ओपचारिक सहकारिता आकार ले रही थी तब समाजशास्त्र ओर अर्थशास्त्र आपस में सम्बद्ध थे ओर अलग अलग शाखाओं के रूप में विभवत नही हुये थे! सहकारिता आज भी उसी काल में अपनी जड़ें फैलाये हुए है और आर्थिक ओर सामाजिक विकास सहकारिता के वृक्ष पर एक साथ पुष्पित और पल्लवित हो रहे हे!
आज के दौर में जब आर्थिक विकास सामाजिक मूल्यों का हनन कर रहा है तब मात्र सहकारिता ही एकमात्र ऐसी विचारधारा के रूप में हमारे सामने आती है जो सामाजिक मूल्यों को साथ में लेकर विकसित होती है! इसमें मेरा अनुभव है कि महिलाएं भारतीय संयुक्त परिवार की नेसर्गिक सहकारी भावना को सहकारी संस्थाओं को
वास्तव में महिलाओं को सहकारिता से अच्छा माध्यम और सहकारिता को महिलाओं से अच्छे कार्यकर्ता नही मिल सकते!
श्रीमती अलका श्रीवास्तव
संस्थापक अध्यक्ष